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Essay on Hindi Language in English (हिंदी भाषा पर निबंध)
Essay on hindi .
Let’s start the essay on hindi…
Outline of the essay
- Our national language- Hindi
- Hindi, our mother-tongue
- Conclusion of the essay
Our national language
Hindi is our mother-tongue, our national language. It is the language that most of the north Indians relate to. The majority of the north Indians speak Hindi. There are other vernacular and regional languages too, like Marathi, Kannada, Malayalam, etc. Well, Hindi is the language we use in ou daily lives, Hindi is certainly the home language of we Indians. Hindi is a very beautiful language, its very aesthetic in its tone. Though we use English as an associate language, as in the other people from the other regions who don’t understand Hindi, they use English as a language too. They converse in English to convey their ideas to the people who majorly know Hindi or English.
Hindi is our national language, it was adopted by the constituent assembly after independence in 1947. Our language though is Hindustani, a mixture of Hindi and Urdu.
Hindi- Our mother tongue
Now, though learning Hindi comes across less fashionable, people are getting more fascinated by foreign languages and forgetting the essence of Hindi. The emphasis on English is widely growing and that’s causing a major threat to the importance and the significance of Hindi. Hindi has become an alien language in its territory.
Hindi is the language that keeps us connected to our roots. Yes, English is indeed a global language, it gives you a way to reach out to the diverse domains and spheres, but one should not forget the importance and the identity of Indians that is very much inherently rooted in the language- Hindi
Conclusion of the essay
Hindi is comparatively a complex language, people far across from the world come to India and invest their time and lives in learning our language- Hindi. Considering that we should not forget that we should emphasize our learning in Hindi as equally as we do in English.
Hope you loved this article. Your love and support is my motivation. Thank you so much. – Aditya sir
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3 thoughts on “Essay on Hindi Language in English (हिंदी भाषा पर निबंध)”
Very nice essay. Thanks for sharing
gst ke bare me
Thank you sir
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बचपन में जब मैं छोटी थी तो मुझे हिंदी बोलने में बहुत शर्म महसूस होती थी। हालांकि मेरी गलती भी नहीं थी। मेरी परवरिश ऐसी जगह हुई जहां पर यह माना जाता था कि अंग्रेजी बोलने से रुतबा बढ़ता है और हिंदी बोलने से रुतबा घटता है। मेरी स्कूल भी कैथोलिक थी। वहां पर अंग्रेजी में बात ना करने पर बच्चों पर फाइन के रूप में जुर्माना लगता था। मुझे अंग्रेजी बोलने और लिखने में बहुत मजा आने लगा। मैंने अंग्रेजी भाषा पर अपनी पकड़ बढ़ा दी। इसका नतीजा यह हुआ कि हिंदी भाषा में मेरे अंक कम आने लगे।
“जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी।”
– (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
राधिकारमण प्रसाद सिंह जी के द्वारा लिखा गया यह वाक्य एकदम सही है। आज के समय में स्थिति कुछ ऐसी ही हो रखी है। आज भारत के लोग दुनियाभर की भाषाओं को सीखने में लगे हैं। फ्रेंच और स्पेनिश भाषा सीखना उनको सम्मान की बात लगती है। आजकल के समय में लोग अपने बच्चों को भी विदेशी भाषाओं को सिखाने में लगे हैं। वह यही चाहते हैं कि उनका बच्चा इन सभी भाषाओं में पारंगत हो।
जब भी उनका बच्चा हिंदी बोलता है तो उनको शर्म महसूस होने लगती है। सभी माँ-बाप यही चाहते हैं कि उनके बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोले। जब उनका बच्चा धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलता है तो उनको बहुत अच्छा महसूस होता है। वह इसे गर्व की बात समझते हैं। लेकिन क्या आपको यह लगता है कि हम ऐसा करके सही दिशा में जा रहे हैं। नहीं बिल्कुल भी नहीं। ऐसा करके हम अपने आप को गर्त में ही धकेल रहे हैं। ऐसा होना बिल्कुल गलत है। क्योंकि ऐसा करके हम अपनी ही संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं।
आज के दौर में भाषाएं
आज के समय में लोग अलग अलग प्रकार की भाषाएं सीखने में लगे हुए हैं। कोई जर्मन सीख रहा है तो कोई फ्रेंच और स्पेनिश भाषा सीखने में व्यस्त है। सारी भाषाओं का अपना अलग महत्व होता है। सभी की अपनी खूबियां है। लेकिन जो बात हमारी भाषा हिंदी में है वह किसी और में नहीं है। हिंदी बड़ी ही प्यारी और मीठी भाषा है। पूरी दुनिया में इस भाषा के कई जने दीवाने हैं। हम जब हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो ऐसा लगता है कि मानो मुँह में जैसे मिश्री घुल गई है। यह भाषा हमारी धड़कनों में बसी है।
हिंदी भाषा का इतिहास
जब भी हमें अपने विचारों को व्यक्त करना होता है तो हम उसे बोलकर व्यक्त करते हैं। बिना बोले या लिखे हम अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने जाहिर नहीं कर पाते हैं। हम इंसान हमेशा से ही कोई ना कोई माध्यम से अपने विचारों को दूसरों के सामने व्यक्त करते आए हैं। हम काफी समय से अपने भावों को जाहिर करते आए हैं। जैसे आदिमानव की अपनी अलग भाषा हुआ करती होगी। हम यह नहीं कह सकते कि उस समय कौन सी भाषा का प्रयोग होता होगा। लेकिन अगर हम अपनी भाषा के इतिहास के बारे में देखें तो हमें यह ज्ञात होता है कि हमारी सबसे पुरानी भाषा संस्कृत रही है।
हिंदी भाषा कैसे विकसित हुई?
प्राचीनकाल में हमने संस्कृत भाषा को देवभाषा का दर्जा दे रखा था। उस समय सभी लोग संस्कृत ही बोलते और लिखते थे। राजा और प्रजा इसी भाषा का प्रयोग करती थी। बड़े बड़े ग्रंथ भी इसी भाषा में लिखे गए। संस्कृत भाषा से ही अन्य सभी भाषाओं का जन्म हुआ। हिंदी भाषा भी संस्कृत भाषा की ही देन है।
हिंदी भाषा तकरीबन 1000 वर्षों से हमारे दिलों पर राज कर रही है। सबसे पहले इस भाषा को प्रचलन में लाने का श्रेय ईरानी लोगों को जाता है। क्योंकि हम भारतीय सिंधु नदी के पास रहा करते थे इसलिए हमारा नाम सिंधु से हिंदू पड़ गया। हिंदी भाषा की उत्पत्ति का श्रेय उत्तर भारत को जाता है। हिंदी भाषा की उत्पत्ति अपभ्रंश से मानी जाती है।
हिंदी भाषा किन भाषाओं का मिश्रण है?
हिंदी विविध भाषाओं का मिला जुला रूप है। अगर हिंदी भाषा के विकास की हम बात करें तो हम अपनी प्रचीन संस्कृत को दो हिस्से में बाँट सकते है लौकिक संस्कृत भाषा और पहली प्राकृत भाषा। इससे ही आगे फिर दूसरी प्राकृत भाषा अस्तित्व में आई। इसी भाषा को हम सभी पाली नाम से भी जानते हैं।
बाद में आगे चलकर हमने पाली भाषा को तीन हिस्सों में बांट दिया था – मागधी, अर्धमागधी (प्राकृत) और शौरसेनी। पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, पहाड़ी, गुजराती को हम शौरसेनी की आधुनिक भाषा कह सकते हैं। नागर अप्रभंश को दो हिस्से में विभाजित कर सकते हैं- पूर्वी हिंदी और पश्चिमी हिंदी। और आखिर में वर्तमान हिंदी। खड़ी बोली को हम हिंदी भाषा का विकसित रूप मानते हैं। यह भाषा बोलने और लिखने में बहुत ही प्यारी लगती है।
हिंदी भाषा का महत्व
हमारे जीवन में हिंदी भाषा का महत्व बहुत ज्यादा है। हिंदी भाषा हमारे देश की जान है और पहचान भी। आज हिंदी की वजह से ही हम है। आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर जो हमें पहचान और मान सम्मान मिला है वह सब हिंदी की बदौलत ही है। यह हम भी अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारा देश बहुत बड़ा है।
इस देश में भिन्न भिन्न प्रकार की जाति और धर्म के लोग निवास करते हैं। उनका खान पान अलग है और पहनावा भी अलग है। पर एक चीज है जो उनको जोड़े रखती है। वह है हमारी राजभाषा। हम यहां पर हिंदी भाषा का बोल रहे हैं। हिंदी भाषा का उदय करीब हजार वर्ष पहले हुआ था। उस समय से लेकर आज तक यह भाषा हमारे लिए गौरव की भाषा बनी हुई है। इसका प्रमाण हम सभी के सामने है।
आज के समय में हमारी हिंदी फ़िल्मों और गानों को खूब पसंद किया जाता है। विदेशों में भी हमारी हिंदी फ़िल्मों को बड़ी चाव से देखा जाता है। यहां तक की हमारी आजादी के समय भी हिंदी भाषा ने बड़ा अहम योगदान दिया। उस समय कविताएं, कहानियां और भाषण इसी भाषा में लिखे और दिए गए। आजादी संग्राम के दौरान यह भाषा एक प्रमुख भाषा बनी रही। आज के दौर में तकरीबन करोड़ों की संख्या में लोग हिंदी बोल और समझ सकते हैं। हिंदी के महत्व को समझते हुए ही हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।
हिंदी को राजभाषा का दर्जा कब प्राप्त हुआ?
यह हम सभी को पता है कि हिंदी को हमारी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। हिंदी से हम भारतीयों का गहरा जुड़ाव है। हिंदी ने हमें नया आयाम दिया है। अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमांऊनी, मागधी और मारवाड़ी सभी हिंदी भाषा का ही अंश है।
अमेरिका और कनाडा जैसे विकसित देशों में भी हिंदी को सीखने वालों की संख्या अधिक है। लेकिन हिंदी को राजभाषा का दर्जा कब प्राप्त हुआ, यह सोचने वाली बात है। हिंदी को राजभाषा बनाने का प्लान तो कभी से ही चल रहा था। बहुत से विदेशी आक्रमणकारियों ने यह सोचा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे देते हैं।
लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए। फिर आजादी से पहले यह मांग उठनी शुरू हो गई थी कि हिंदी को ही भारत की राष्ट्रभाषा बना दी जाए। 15 अगस्त 1947 के बाद से यह मुद्दा बहुत गर्म हो गया था। क्योंकि भारत में अनेकों भाषाएँ बोली जाती थी इसलिए ऐसा हो नहीं पाया। लेकिन 1949 में अंतिम निर्णय यह लिया गया कि हिंदी को राष्ट्रभाषा की जगह राजभाषा का दर्जा दे दिया जाए। तब से लेकर आज तक हिंदी हमारी राजभाषा बनी हुई है।
हिंदी भाषा में रोजगार के अवसर
साल 2014 तक तो हिंदी भाषा को लेकर दुनिया में इतनी जागरूकता नहीं थी। लेकिन 2014 के बाद से हिंदी भाषा के प्रति दुनियाभर भर में सम्मान और उत्साह देखने को मिला। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इस भाषा को लेकर पहले कोई क्रेज नहीं था। हिंदी के प्रति दीवानगी तो हमेशा से ही रही है।
अब हम बात करते हैं कि क्या हम हिंदी भाषा में रोजगार के अवसर मिल सकते हैं? तो इसका सीधा सा उत्तर है – हाँ। आज के दौर में जब हिंदी भाषा को इतनी लोकप्रियता मिल गई है कि इस भाषा से हम रोजगार के अवसर भी प्राप्त कर सकते हैं। आज बैंकिंग सेक्टर से लेकर फिल्मी जगत और विज्ञापन की दुनिया में हिंदी भाषा का बोलबाला है।
आज के समय में हम हिन्दी राजभाषा अधिकारी, हिन्दी अध्यापन, हिन्दी पत्रकारिता, हिन्दी अनुवादक/दुभाषिया, रेडियो जॉकी और समाचार वाचक के रूप में धन अर्जन कर सकते हैं। आज मीडिया, फिल्म, जनसंपर्क, बैंकिंग क्षेत्र, विज्ञापन आदि क्षेत्रों में अनुवादकों की मांग भी काफी बढ़ गई है। इसलिए आज के समय में अगर हमारी हिंदी भाषा पर पकड़ अच्छी है तो हमारे सामने रोजगार के ढेरों अवसर है।
हिंदी भाषा के कुछ प्रसिद्ध लेखकों के नाम
- सीताराम सेकसरिया
- लीलाधर मंडलोई
- प्रहलाद अग्रवाल
- रविंद्र केलेकर
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- जयशंकर प्रसाद
- रामचन्द्र शुक्ल
- हरिवंशराय बच्चन
- महादेवी वर्मा
- सुमित्रानंदन पन्त
- सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- सुभद्राकुमारी चौहान
- सोहनलाल द्विवेदी
- माखनलाल चतुर्वेदी
- भारतेन्दु हरिश्चंद
- रामनरेश त्रिपाठी
हिंदी भाषा पर निबंध 200 शब्दों में
इस दुनिया में सभी को अपनी भाषा प्रिय होती है। उनको अपनी भाषा पर अभिमान और गर्व होता है। रूस में रहने वाले लोग रशियन बोलते हैं। तो वहीं जापान में रहने वाले लोग जापानी बोलते हैं। हमारे देश के लोग हिंदी बोलते हैं। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। हिंदी भाषा को भारत के दिल की धड़कन माना जाता है।
हमारी भाषा विदेशों में भी बड़े ही चाव के साथ बोली जाती है। इस भाषा की लोकप्रियता इतनी है कि आज अंग्रेजी के बाद अगर कोई दूसरी भाषा सीख रहा है तो वह हिंदी भाषा है। हिंदी भाषा बोलने और लिखने में बहुत ही सरल है। जब कोई विदेशी हमारी भाषा को अच्छे से बोलता है तो हमें बहुत गर्व महसूस होता है।
आज हिंदी भाषा का बोलबाला भी हर जगह नजर आता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारी हिंदी सिनेमा और हिंदी गाने हर किसी को पसंद आते हैं। आज के दौर में हिंदी भाषा में रोजगार के अवसर भी अधिक हो गए हैं। आज आप हिंदी का लेखक या टीचर बनकर खूब कमा सकते हैं। यूट्यूब पर भी हजारों ऐसी वीडियो उपलब्ध है जिसमें आपको हिंदी भाषा के बारे में अच्छा ज्ञान दिया जाता है। आज के दौर में हिंदी भाषा ने अपनी अच्छी पहचान बना ली है।
हिंदी भाषा पर 10 लाइन
- हिंदी हमारी राजभाषा के नाम से जानी जाती है।
- आज के समय में 70 करोड़ लोग हिंदी भाषा को समझ और बोल सकते हैं।
- 14 सितंबर 1949 को पहली बार हिंदी भाषा को भारत की राजभाषा होने का सम्मान मिला।
- हमारे देश के बड़े बड़े नेता जैसे महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस आदि हिंदी का बड़ा सम्मान करते थे।
- अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा प्रभाव हिंदी भाषा का है।
- भारत हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाता है।
- हिंदी भाषा समझने में बड़ी आसान और बोलने में बड़ी प्यारी भाषा है।
- हिंदी भाषा का अविष्कार आज से 1000 वर्ष पहले ही हो गया था।
- हमें लोगों में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम और जागरूकता जगानी चाहिए।
- मेरी भी प्रिय भाषा हिंदी ही है।
हिंदी भाषा ने हमें विश्व में नई पहचान और सम्मान दिलाया है। हिंदी भाषा से हमारी संस्कारों की जड़ें जुड़ी हुई है। हमें हिंदी भाषी होने पर बड़ा गर्व है। आज दुनियाभर के 70 करोड़ लोग हिंदी बोल सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आज आपको हमारे द्वारा तैयार किया गया यह निबंध जरूर पसंद आया होगा।
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हिंदी भाष से सम्बंधित FAQs
Q1. हिंदी भाषा के बाद सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा कौन सी है?
A1. हिंदी भाषा के बाद सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा बांग्ला और तेलुगू है।
Q2. हिंदी को राजभाषा होने का सम्मान कब मिला था?
A2. 14 सितंबर 1949 को पहली बार हिंदी भाषा को भारत की राजभाषा होने का सम्मान मिला था।
Q3. हिंदी भाषा का जन्म कौन सी भाषा से हुआ?
A3. हिंदी भाषा का जन्म अपभ्रंश भाषा से हुआ था।
Q4. हिंदी के कुछ लेखकों का नाम बताइए?
A4. जयशंकर प्रसाद, कबीर, महादेवी वर्मा, मल्लिक मुहम्मद जायसी, मीराबाई, रसखान, संत रैदास, तुलसीदास, कालिदास, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आदि।
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हिंदी भाषा पर निबंध – Essay on Hindi language
हिंदी पर निबंध.
Official Language Hindi : Status and Conflict Full Essay / राजभाषा हिंदी : स्थिति और संघर्ष पर आधारित पूरा निबंध 2019 ( हिंदी भाषा पर पूरा निबंध)
हिंदी: संपर्क भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा:
हिंदी भाषा के अनेक रूप हैं – संपर्क भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा । हिंदी प्रदेशों एवं हिंदी प्रदेशों में हिंदी भाषा आम बोलचाल, बाज़ार, व्यापार, राजनीति, पत्रकारिता, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों में आपसी वैचारिक आदान-प्रदान के रूप में काम में आ रही है। बल्कि अब इलेक्ट्रोनिक मीडिया के द्वारा देश की सीमाओं से परे विदेशों में भी फैलती जा रही है। यह हिंदी का एक संपर्क भाषा का रूप है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रीयता की भावना का माध्यम बनकर संपूर्ण राष्ट्र की वाणी का प्रतिनिधित्व करने के लिए हिंदी को अपनाया गया और उसे स्वतंत्रता के बाद देश की अन्य 22 भाषाओं को साथ-साथ राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली भाषाओं के रूप में संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया। सरकारी कामकाज के माध्यम के रूप में हिंदी को भारत संघ द्वारा एवं हिंदी प्रदेशों द्वारा अपनाया गया है, वह हिंदी का राजभाषा का रूप है। किंतु विचारणीय यह है कि हम आज़ादी के बाद हिंदी को राजभाषा के रूप में अधिक विकसित करते हा रहे हैं या उसकी भूमिका को सिकोड़ते जा रहे हैं।
स्वतंत्रता से पूर्व हिंदी की स्थिति:
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हमारा संविधान और राजभाषा हिंदी:
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक हिंदी के राजभाषा संबंधी व्यवस्था के निर्देश हैं । अनुच्छेद 343(1) में देवनागरी लिपि लिखी जानेवाली हिंदी को संघ की राजभाषा कहा गया है, साथ ही प्रारंभ के 15 वर्षों तक अंग्रेज़ी के प्रयोग को भी सभी शासकीय कार्यों के लिए मान्यता दी गई। अनुच्छेद 344 के अनुसार प्रत्येक पाँच वर्ष के पश्चात् राष्ट्रपति एक भाषा आयोग की नियुक्ति करेंगे। वह आयोग हिंदी का उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग करने और अंग्रेज़ी का प्रयोग घटाने की सिफ़ारिश करेगा। अनुच्छेद 345, 346, 347 के अनुसार दो प्रदेशों के बीच अथवा एक प्रदेश और संघ के बीच संवाद विनिमय के लिए अंग्रेज़ी अथवा हिंदी का और परस्पर समझौते से केवल हिंदी का प्रयोग किया जा सकेगा । किसी राज्य की विधानसभा विधि द्वारा अपने प्रदेश की भाषा को मान्यता प्रदान कर सकेगी। यदि कोई राज्य अंग्रेजी को जारी नहीं रखना चाहता तो विधि द्वारा उस प्रदेश की भाषा राजभाषा हो जाएगी । उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय की भाषा अंग्रेज़ी होगी किंतु राष्ट्रपति या राज्यपाल की पूर्व सम्मति से हिंदी अथवा उस राज्य की भाषा का प्रयोग उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लिए प्राधिकृत किया जा सकेगा।
राजकीय प्रयोजनों में हिंदी के विकास के लिए अनुच्छेद 351 का विशेष महत्व है। संघ को यह कार्य 15 वर्षों में कर लेना चाहिए था किंतु राजनीतिक इच्छा के अभाव में छह दशकों के बाद भी संघ अपने कर्तव्य को बहुत कम पूरा कर पाया है। राजभाषा अधिनियम, 1967 के द्वारा अंग्रेज़ी के प्रयोग को अनिश्चित समय तक जारी रखने का उपबंध भी किया गया है जिसके फलस्वरूप अब कोई प्रदेश तक चाहेगा, अंग्रेजी को भी संघ की राजभाषा के रूप में अपनाता रह सकेगा। इस प्रावधान से अब मिज़ोरम, नगालैंड आदि प्रदेश जिन्होंने अपनी प्रादेशिक भाषा ही अंग्रेजी अपना रखी है, हिंदी से जुड़ने की मानसिकता से मुक्त हो गए हैं।
राजकाज में हिंदी का प्रयोग:
संघीय स्तर पर राजभाषा के रूप में अंग्रेज़ी का वर्चस्व आज भी कायम है। जो स्थिति मुगल काल में जनता से परे की भाषा, शासकों की भाषा फ़ारसी की थी, कमोबेश वही स्थिति आज अंग्रेज़ी की है। अंग्रेज़ी आज दक्षिण भाषा-भाषियों के विरोध के कारण ही नहीं, बल्कि प्रशासकों एवं समाज के उच्च वर्ग के अपने निहित स्वार्थ के कारण, राजकाज के स्तर पर, उच्च शिक्षा के स्तर पर छाई हुई है। जब तक अंग्रेज़ी के साथ प्रतिष्ठा, सत्ता, नौकरी और पैसा जुड़ा रहेगा, तब तक लोगों से यह अपेक्षा करना कि वे अपने बच्चों को अंग्रेज़ी न पढ़ाएँ, एक तथ्य को अनदेखा करना होगा । जब तक ये अंग्रेज़ी के मानस-पुत्र सत्तारूढ़ रहेंगे, तक तब अंग्रेज़ी शिक्षा भी प्रचलन में रहेगी और राजभाषा के रूप में भी। गाँधी जी ने अंग्रेज़ी के इस मोह से पिंड छुड़ाना ‘स्वराज’ का अनिवार्य अंग माना था, किंतु देश की विडंबना है कि वह इस मोह से छूटने की बजाय दिन-प्रतिदिन उसमें जकड़ता जा रहा है। यही हमारी गुलाम मानसिकता का परिचायक है और हिंदी की अपनी त्रासदी भी है।
यह भी पढ़े: भारतीय लोकतंत्र निबंध
राजभाषा की वर्तमान स्थिति:
हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाने में राष्ट्रीय-प्रतिबद्धता की कमी तथा क्षेत्रीयवाद एवं चंद शासक वर्ग द्वारा आम जनता को पिछड़ा रखने की साज़िश तो है ही साथ ही राजभाषा के रूप में कभी हम अंग्रेज़ी के अनुवाद बहुत जटिल कर बैठते हैं, कभी वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा निर्मित तकनीकी शब्दों का प्रयोग नहीं करके भ्रम फैलाते हैं, कभी हिंदी के शब्द-कोश, टंकण, कंप्यूटर आदि खरीदने में शिथिलता बरतते हैं, कभी अंग्रेज़ी का जो ढर्रा चला आ रहा है उसे बदलने में संकोच या आलस करते हैं। प्रत्येक 14 सितंबर को सरकारी कार्यालय प्रायः हिंदी दिवस , सप्ताह, पखवाड़ा या मास का आयोजन करते हैं किंतु जितनी निष्ठा से हिंदी को अपनाने का कार्य होना चाहिए वह नहीं करते । दरअसल हर सरकारी कर्मचारी यदि अपने राष्ट्रीय एवं भाषाई बोध से गर्वित होकर कष्ट उठाकर भी हिंदी को अपनाने का संकल्प कर ले तो राजभाषा के रूप में हिंदी का शत-प्रतिशत व्यवहार संभव हो सकता है । हम संकल्प लें और करें, अन्य कोई उपाय नहीं है।
राजभाषा हिंदी: राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक गरिमा का सवाल:
संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी को अपनाना और अंग्रेज़ी से मुक्ति चाहना न केवल प्रबल राजनीतिक इच्छा की अपेक्षा करता है बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और भारतीय जनता की अपनी भाषा को गौरवान्वित करने की समझ से भी जुड़ा हुआ है । हिंदी का प्रश्न आम जनता के विकास का प्रश्न भी है क्योंकि अंग्रेज़ी के 3 प्रतिशत लोग हैं जबकि 44 प्रतिशत जनता की भाषा हिंदी ही है। अतः न केवल राजनीतिक निर्णय के रूप में बल्कि आम जनता के भावात्मक एवं बौद्धिक विकास की दृष्टि से हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप पूरे देश में, सभी प्रादेशिक सरकारों द्वारा अंगीकार करना चाहिए तथा अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक गरिमा एवं राष्ट्रीयता को सम्मान देने का परिचय देना चाहिए।
यह भी पढ़े: परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध
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हिंदी भाषा का महत्व पर निबंध
By विकास सिंह
विषय-सूचि
हिंदी भाषा का महत्व पर निबंध (Importance of hindi language)
हिंदी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषाओं में से एक है। हिंदी भाषा का महत्व सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में काफी अधिक है।
हिंदी भाषा में 11 स्वर और 35 व्यंजन होते हैं और इसे “देवनागरी” नामक एक लिपि में लिखा जाता है। हिंदी एक समृद्ध व्यंजन प्रणाली से सुसज्जित है, जिसमें लगभग 38 विशिष्ट व्यंजन हैं। हालाँकि, ध्वनि की इन इकाइयों के रूप में स्वरों की संख्या निर्धारित नहीं की जा सकती है, बड़ी संख्या में बोलियों की मौजूदगी के कारण, जो व्यंजन प्रदर्शनों की सूची के कई व्युत्पन्न रूपों को नियोजित करती हैं।
हालाँकि, व्यंजन प्रणाली का पारंपरिक मूल सीधे संस्कृत से विरासत में मिला है, जिसमें अतिरिक्त सात ध्वनियाँ हैं, जिन्हें फारसी और अरबी से लिया गया है।
हिंदी भाषा किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
500 मिलियन से अधिक बोलने वालों के साथ, चीनी के बाद हिंदी दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी को भारत के “राजभाषा” (राष्ट्रभाषा) के रूप में अपनाने से पहले इसमें काफी बदलाव आया है।
इंडो-आर्यन भाषाई वर्गीकरण प्रणाली के सिद्धांत के अनुसार, हिंदी भाषाओं के मध्य क्षेत्र में रहती है। 1991 की जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदी को “देश भर में एक भाषा” के रूप में भारतीय आबादी के 77% से अधिक द्वारा घोषित किया गया था। भारत की बड़ी आबादी के कारण हिंदी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।
1991 की भारत की जनगणना के अनुसार (जिसमें हिंदी की सभी बोलियाँ शामिल हैं, जिनमें कुछ भाषाविदों द्वारा अलग-अलग भाषाएं मानी जा सकती हैं – जैसे, भोजपुरी), हिंदी लगभग 337 मिलियन भारतीयों की मातृभाषा है, या भारत के 40% लोगों की है। उस वर्ष जनसंख्या। एसआईएल इंटरनेशनल के एथनोलॉग के अनुसार, भारत में लगभग 180 मिलियन लोग मानक (खारी बोलि) हिंदी को अपनी मातृभाषा के रूप में मानते हैं, और अन्य 300 मिलियन लोग इसे दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करते हैं।
भारत के बाहर, नेपाल में हिंदी बोलने वालों की संख्या 8 मिलियन, दक्षिण अफ्रीका में 890,000, मॉरीशस में 685,000, अमेरिका में 317,000 है। यमन में 233,000, युगांडा में 147,000, जर्मनी में 30,000, न्यूजीलैंड में 20,000 और सिंगापुर में 5,000, जबकि यूके, यूएई, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी हिंदी बोलने वालों और द्विभाषी या त्रिभाषी बोलने वालों की उल्लेखनीय आबादी है जो अंग्रेजी से हिंदी के बीच अनुवाद और व्याख्या करते हैं।
हिंदी भाषा का विकास (growth of hindi language)
1947 के विभाजन के बाद भारत सरकार द्वारा समर्थित संक्रांति दृष्टिकोण से हिंदी की वर्तमान बनावट बहुत प्रभावित है। स्वतंत्रता से पहले अपने मूल रूप में, हिंदी ने उर्दू के साथ मौखिक समानता की काफी हद तक साझा की है। हिंदी और उर्दू को अक्सर एक ही इकाई के रूप में संदर्भित किया जाता था जिसका शीर्षक था “हिंदुस्तानी”।
इसके साथ ही कई अन्य भाषाओं जैसे अवधी, बघेली, बिहारी (और इसकी बोलियाँ), राजस्थानी (और इसकी बोलियाँ) और छत्तीसगढ़ी। हालाँकि, यह दृष्टिकोण वस्तुतः प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान और सार्वजनिक सूचना के माध्यम की वकालत करता है, जो वाराणसी बोली की तर्ज पर भारतीय विद्वानों द्वारा विकसित एक संस्कृत-उन्मुख भाषा को रोजगार देता है।
लिपि:
देवनागरी लिपि
महत्वपूर्ण लेखक:
रामधारी सिंह ‘दिनकर’, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन, हरिवंश राय बच्चन, नागार्जुन, धर्मवीर भारती, अशोक बजाज, अशोक बजाज, अशोक बजाज चंद्र शुक्ला, महादेवी वर्मा, मुंशी प्रेमचंद, फणीश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई, रामवृक्ष बेनीपुरी, चक्रधर शर्मा गुलेरी, विष्णु प्रभाकर, अमृत लाल नागर, भीष्म साहनी, सूर्यकांत निराला आदि को हिंदी के सबसे मशहूर लेखकों में गिना जाता है ।
हिंदी स्थानीयकरण और सूचना प्रौद्योगिकी
हिंदी टाइपिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले कई लोकप्रिय फॉन्ट हैं; यूनिकोड, मंगल, क्रुतिदेव, आदि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की एक टीम पहले से ही मशीनी अनुवाद सॉफ्टवेयर को विकसित करने और हिंदी को मानकीकृत करने के लिए काम कर रही है, हालाँकि वे इसके माध्यम से कोई बड़ा तोड़ नहीं बना पाए हैं।
हिंदी भाषा की बढ़ती प्रोफ़ाइल के प्रति हाल की चेतना ने लाखों हिंदी बोलने वालों को आशा दी है और आशा है कि आने वाले समय में हिंदी को मान्यता मिलेगी और संयुक्त राष्ट्र आधिकारिक भाषा बन जाएगी। यह समय हिंदी केंद्र, हिंदी विश्वविद्यालयों, हिंदी गैर सरकारी संगठनों और लाखों हिंदी भाषियों को हिंदी की रूपरेखा बढ़ाने के लिए हाथ मिलाना चाहिए। हिंदी सिनेमा और बॉलीवुड ने पहले ही अच्छा योगदान दिया है, इसी तरह हिंदी मीडिया ने भी चमत्कार किया है।
वैश्विक मोर्चे पर हिंदी के बढ़ते महत्व के आधार पर, अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद और हिंदी से अंग्रेजी अनुवाद के लिए भविष्य उज्ज्वल है। हालाँकि, भारतीय को अंग्रेज़ी शब्दकोश और अंग्रेज़ी से हिंदी शब्दकोश में ऑनलाइन हिंदी विकसित करने और ऑनलाइन हिंदी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने के प्रयासों की आवश्यकता है।
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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.
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धन्यवाद !
Finally I got a nice speech
thank you vikas singh bhai
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भाषा का महत्व पर निबंध | Essay On The Importance Of Language In Hindi
नमस्कार फ्रेड्स आज हम भाषा का महत्व पर निबंध Essay On The Importance Of Language In Hindi पढ़ेगे.
आज के निबंध में जानेगे कि भाषा क्या होती है हिंदी भाषा का महत्व जीवन में भाषा की उपयोगिता के बारे में विस्तार से सरल भाषा में जानेगे.
भाषा का महत्व पर निबंध Essay On The Importance Of Language
भाषा भावों की वाहिका और विचारों की माध्यम होती है. अतएवं किसी भी जाति अथवा राष्ट्र की भावोंत्क्रष और विचारों की समर्थता उसकी भाषा से स्पष्ट होती है.
जब से मनुष्य ने इस भूमंडल पर होश संभाला है, तभी से भाषा की आवश्यकता रही है. भाषा व्यक्ति को व्यक्ति से, जाति को जाति से राष्ट्र को राष्ट्र से मिलाती है.
भाषा का महत्व पर निबंध Short Essay On The Importance Of Language
भाषा द्वारा ही राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोया जा सकता है. राष्ट्र को सक्षम और धनवान बनाने के लिए भाषा और साहित्य की सम्पन्नता और उसका विकास परमआवश्यक है.
भाषा का भावना से गहरा सम्बन्ध है. और भावना तथा विचार व्यक्तिगत के आधार है. यदि हमारे भावों तथा विचारों को पोषक रस किसी विदेश अथवा पराई भाषा से मिलता है. तो निश्चय ही हमारी व्यक्तिगत भी भारतीय अथवा स्वदेशी न रहकर अभारतीय अथवा विदेशी हो जाएगा.
प्रत्येक भाषा और प्रत्येक साहित्य अपने देश काल और धर्म से परिचित तथा विकसित होता है. उस पर अपने महापुरुषों और चिंतको का, उनकी अपनी परिस्थतियों के अनुसार प्रभाव पड़ता है.
कोई दूसरा देश काल और समाज भी उस सुंदर स्वास्थ्यकारी संस्कृति से प्रभावित हो, यह आवश्यक नही है.
अतएवं व्यक्ति के व्यक्तित्व का समुचित विकास और उसकी शक्तियों को समुचित गति अपने पठन पाठन में मिल सकती है.
इसका कारण यह भी है कि मात्रभाषा में जितनी सहज गति से संभव है और इसमे जितनी कम शक्ति समय की आवश्यकता पडती है उतनी किसी भी विदेशी और पराई भाषा से संभव नही है.
यह भी सच है कि हमारे देश के प्रतिभाशाली और होनहार लोग पशिचमी भाषा और साहित्य में अपनी क्षमता को देखकर स्वयं भी चकिंत रह जाते है. जिसकी यह मातृभाषा नही है.
यह भी मानना पड़ेगा कि इन परिश्रमी लोगों ने अपनी शक्ति समय और तन्मयता पराई भाषा के लिए खपाई, वह यदि मातृभाषा के लिए प्रयोग की गई होती तो एक अद्भुत चमत्कार ही हो गया होता.
माइकेल मधुसूदन दत्त का द्रष्टान्त आपके सामने है. प्रतिभा के स्वामी इस बांगला कवि ने अंग्रेजी में काव्य रचना करके कीर्ति और गौरव कमाने के लिए भारी परिश्रम और प्रयत्न किया. यह तथ्य उनको तब समझ में आया जब वे इंग्लैंड यात्रा पर गये.
बहुत अच्छा लिखकर भी वह द्वितीय श्रेणी के लेखक और कवित से अधिक कुछ नही हो सके. यदि चाहते तो अपनी भाषा के कृतित्व के बल पर वह सहज ही प्रथम श्रेणी के कवियों में प्रतिष्टित हो सकते थे.
यह सब पता चलने के बाद उन्होंने अपनी भाषा में लिखने का निर्णय किया. प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता है.
श्रीमती सरोजनी नायडू यदि अपनी मातृभाषा में काव्यरचना करती तो निश्चय ही श्रेष्ट कवयित्री होने का गौरव प्राप्त करती. मै देखती हु कि उच्च ज्ञान विज्ञान का माध्यम अंग्रेजी होने पर पिछले डेढ़ सौ वर्षो में अंग्रेजी में एक भी रवीन्द्रनाथ, शरतचंद्र, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त और उमाशंकर जोशी आदि पैदा नही हो सके. राष्ट्रभाषा राष्ट्र की उन्नति की धौतक होती है.
मानव जाति के विकास के सिदीर्घ इतिहास में सर्वाधिक महत्व संप्रेषण के माध्यम का रहा है और वह माध्यम है भाषा. मनुष्य समाज की इकाई होता है तथा मनुष्यों से ही समाज बनता है.
समाज की इकाई होने के कारण परस्पर विचार, भावना, संदेश, सूचना आदि को अभिव्यक्त करने के लिए मनुष्य भाषा का ही प्रयोग करता हैं.
वह भाषा चाहे संकेत भाषा हो अथवा व्यवस्थित, ध्वनियों शब्दों या वाक्यों में प्रयुक्त कोई मानक भाषा हो. भाषा के माध्यम से ही हम अपने भाव एवं विचार दूसरे व्यक्ति तक पहुचाते हैं तथा दूसरे व्यक्ति के भाव एवं विचार जान पाते हैं.
भाषा ही वह साधन हैं. जिससे हम अपने इतिहास संस्कृति, संचित विज्ञान तथा महान परम्पराओं को जान पाते हैं.
हिंदी भाषा का महत्व पर निबंध Essay on importance of Hindi language
संसार में संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, बंगला, गुजराती, उर्दू, मराठी, तेलगू, मलयालम, पंजाबी, उड़िया, जर्मन, फ्रेंच, इतालवी, चीनी जैसी अनेक भाषाएँ हैं. भारत अनेक भाषा भाषी देश हैं.
तथा अनेक बोली और भाषाओं से मिलकर ही भारत राष्ट्र बना हैं. संस्कृत हमारी सभी भारतीय भाषाओं की सूत्र भाषा है तथा वर्तमान में हिंदी हमारी राजकीय भाषा हैं.
भाषा के दो प्रकार होते है, पहला मौखिक व दूसरा लिखित. मौखिक भाषा आपस में बातचीत के द्वारा, भाषणों तथा उद्बोधन के रूप में प्रयोग में लाई जाती हैं.
तथा लिखित भाषा लिपि के माध्यम से लिखकर प्रयोग में लाई जाती हैं. यदपि भाषा भौतिक जीवन के पदार्थों तथा मनुष्य के व्यवहार व चिंतन की अभिव्यक्ति के साधन के रूप में विकसित हुई हैं.
जो हमेशा एक सी नहीं रहती हैं अपितु उसमें दूसरी बोलियों, भाषाओं से सम्पर्क भाषाओं से शब्दों का आदान प्रदान होता रहता हैं.
जीवन के प्रति रागात्मक सम्बन्ध भाषा के माध्यम से ही उत्पन्न होता हैं. किसी सभ्य समाज का आधार उसकी विकसित भाषा को ही माना जाता हैं.
हिंदी खड़ी बोली ने अपने शब्द भंडार का विकास दूसरी जनपदीय बोलियों, संस्कृत तथा अन्य समकालीन विदेशी भाषाओं के शब्द भंडार के मिश्रण से किया हैं. किन्तु हिंदी के व्याकरण के विविध रूप अपने ही रहे हैं.
हिंदी में अरबी फ़ारसी अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओं के शब्द भी प्रयोग के आधार पर तथा व्यवहार के आधार पर आकर समाहित हो गये हैं. भाषा स्थायी नहीं होती उसमें दूसरी भाषा के लोगों के सम्पर्क में आने से परिवर्तन होते रहते हैं.
भाषा में यह परिवर्तन धीरे धीरे होता हैं. और इन परिवर्तनों के कारण नई नई भाषाएँ बनती रहती हैं, इसी कारण संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि के क्रम में ही आज की हिंदी तथा राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, सिन्धी, बंगला, उड़िया, असमिया, मराठी आदि अनेक भाषाओं का विकास हुआ हैं.
भाषा के भेद प्रकार (Type of language)
जब हम आपस में बातचीत करते है तो मौखिक भाषा का प्रयोग करते है तथा पत्र, लेख, पुस्तक, समाचार पत्र आदि में लिखित भाषा का प्रयोग करते हैं. विचारों का संग्रह भी हम लिखित भाषा में ही करते हैं.
- मौखिक भाषा (Oral language)
- लिखित भाषा (written language)
मूलतः सामान्य जन जीवन के बीच बातचीत में मौखिक भाषा का ही प्रयोग होता हैं, इसे प्रयत्नपूर्वक सीखने की आवश्यकता नहीं होती हैं.
बल्कि जन्म के बाद बालक द्वारा परिवार व समाज के सम्पर्क तथा परस्पर सम्प्रेष्ण व्यवहार के कारण स्वाभा विक रूप से ही मौखिक भाषा सीखी जाती हैं.
जबकि लिखित भाषा की वर्तनी और उसी के अनुरूप उच्चारण प्रयत्नपूर्वक सीखना पड़ता हैं. मौखिक भाषा की ध्वनियों के लिए स्वतंत्र लिपि चिह्नों के द्वारा भी भाषा का निर्माण होता हैं.
भाषा और बोली में अंतर
एक सीमित क्षेत्र में बोले जाने वाले भाषा के स्थानीय रूप को बोली कहा जाता हैं, जिसे उप भाषा भी कहते हैं. कहा गया है कि कोस कोस पर पानी बदले पांच कोस पर बानी.
हर पांच सात मील पर बोली में बदलाव आ जाता हैं. भाषा का सीमित, अविक सित तथा आम बोलचाल वाला रूप बोली कहलाती हैं.
जिसमें साहित्य की रचना नहीं होती तथा जिसका व्याकरण नहीं होता व शब्दकोश भी नहीं होता, जबकि भाषा विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती हैं, उसका व्याकरण तथा शब्दकोश होता हैं तथा उसमें साहित्य लिखा जाता हैं.
किसी बोली का संरक्षण तथा अन्य कारणों से यदि क्षेत्र विस्तृत होने लगता है तो उसमें साहित्य लिखा जाने लगता हैं. तो वह भाषा बनने लगती है तथा उसका व्याकरण निश्चित होने लगता हैं.
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हमारी राष्ट्र भाषा: हिन्दी पर निबंध | Essay on Hindi-Our National Language in Hindi
हमारी राष्ट्र भाषा: हिन्दी पर निबंध | Essay on Hindi-Our National Language in Hindi!
भाषा के द्वारा मनुष्य अपने विचारों को आदान-प्रदान करता है । अपनी बात को कहने के लिए और दूसरे की बात को समझने के लिए भाषा एक सशक्त साधन है ।
जब मनुष्य इस पृथ्वी पर आकर होश सम्भालता है तब उसके माता-पिता उसे अपनी भाषा में बोलना सिखाते हैं । इस तरह भाषा सिखाने का यह काम लगातार चलता रहता है । प्रत्येक राष्ट्र की अपनी अलग-अलग भाषाएं होती हैं । लेकिन उनका राज-कार्य जिस भाषा में होता है और जो जन सम्पर्क की भाषा होती है उसे ही राष्ट्र-भाषा का दर्जा प्राप्त होता है ।
भारत भी अनेक रज्य हैं । उन रध्यों की अपनी अलग-अलग भाषाएं हैं । इस प्रकार भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है लेकिन उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा है- हिन्दी । 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को यह गौरव प्राप्त हुआ । 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संविधान बना । हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया । यह माना कि धीरे-धीरे हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ले लेगी और अंग्रेजी पर हिन्दी का प्रभुत्व होगा ।
आजादी के इतने वर्षो बाद भी हिन्दी को जो गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए था वह उसे नहीं मिला । अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि हिन्दी को उस का यह पद कैसे दिलाया जाए ? कौन से ऐसे उपाय किए जाएं जिससे हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकें ।
ADVERTISEMENTS:
यद्यपि हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी है, परन्तु हमारा चिंतन आज भी विदेशी है । हम वार्तालाप करते समय अंग्रेजी का प्रयोग करने में गौरव समझते हैं, भले ही अशुद्ध अंग्रेजी हो । इनमें इस मानसिकता का परित्याग करना चाहिए और हिन्दी का प्रयोग करने में गर्व अनुभव करना चाहिए । हम सरकारी कार्यालय बैंक, अथवा जहां भी कार्य करते हैं, हमें हिन्दी में ही कार्य करना चाहिए ।
निमन्त्रण-पत्र, नामपट्ट हिन्दी में होने चाहिए । अदालतों का कार्य हिन्दी में होना चाहिए । बिजली, पानी, गृह कर आदि के बिल जनता को हिन्दी में दिये जाने चाहिए । इससे हिन्दी का प्रचार और प्रसार होगा । प्राथमिक स्तर से स्नातक तक हिन्दी अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाई जानी चाहिए ।
जब विश्व के अन्य देश अपनी मातृ भाषा में पढ़कर उन्नति कर सकते हैं, तब हमें राष्ट्र भाषा अपनाने में झिझक क्यों होनी चाहिए । राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-व्यवहार हिन्दी में होना चाहिए । स्कूल के छात्रों को हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए । जब हमारे विद्यार्थी हिन्दी प्रेमी बन जायेंगे तब हिन्दी का धारावाह प्रसार होगा । हिन्दी दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए:
गूंज उठे भारत की धरती , हिन्दी के जय गानों से । पूजित पोषित परिवर्द्धित हो बालक वृद्ध जवानों से ।।
-जगदीश चन्द्र त्यागी ।
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